04 जनवरी 2010

पाती प्रेम की

पाती प्रेम की

तुम्हारे सौंदर्यबोध में मैंने बहुत से शब्द ढूंढे़

अपनी भावनाओं को कोरे कागज पर बारम्बार उकेरा

फिर उसके टुकडे़-टुकड़े किए

हर बार शब्द शर्मा जाते........

फिर इस तरह किया मैंने

अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त

गुलाब की अबोध-नि:शब्द पंखुड़ी को

लिफाफे में बंद कर तुम्हें भेज दिया..........

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