21 अगस्त 2010

भोपाल मामले पर भारत को अमरीका की चेतावनी -बीबीसी की खबर-

एक वरिष्ठ अमरीकी अधिकारी ने कथित रूप से एक पत्र लिखकर भारत से कहा है कि भोपाल गैस मामले में और हर्जाना वसूल करने के लिए अमरीकी कंपनी डाओ केमिकल्स पर दबाव डालने से निवेश का माहौल ख़राब हो सकता है.
टेलीविज़न चैनल टाईम्स नाउ का कहना है कि उनके हाथ एक ई-मेल लगी है जो अमरीका के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार फ्रोमन माइकल ने भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को लिखी है.
उन्होंने लिखा है, “डाओ केमिकल्स के मामले पर बहुत शोर सुन रहे हैं. मुझे इस मामले की बहुत ज़्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन बेहतर होगा कि हम ऐसी बातों से बचें जिसका निवेश के माहौल पर ख़राब असर पड़े.”
स्पष्ट है कि निवेश से उनका इशारा भारत में अमरीकी निवेश की ओर है.
डाओ केमिकल्स के मामले पर बहुत शोर सुन रहे हैं. मुझे इस मामले की बहुत ज़्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन बेहतर होगा कि हम ऐसी बातों से बचें जिसका निवेश के माहौल पर ख़राब असर पड़े
अमरीकी अधिकारी
विश्लेषक इस ईमेल को अमरीका की ओर से एक चेतावनी की तौर पर देख रहे हैं.
उनकी ये ईमेल मोंटेक सिंह अहलूवालिया के ईमेल के जवाब में आई है जिसमें उन्होंने फ्रोमन माइकल से विश्व बैंक से रियायती दर पर मदद जारी रखने के लिए अमरीकी मदद की गुज़ारिश की है.
जब मोंटेक सिंह अहलूवालिया से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वो अमरीका के साथ ऐसे किसी मामले से जुड़े नहीं हैं जो अदालत में है (भोपाल गैस का मामला).
साथ ही उनका कहना था, “मैं इन दोनों ई-मेल के बीच कोई संबंध नहीं देखता हूं (यानि डाओ केमिकल्स और विश्व बैंक से रियायत के मामले में).”
डाओ केमिकल्स की भूमिका पर भारत सरकार कह चुकी है कि वो मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फ़ैसले का इंतज़ार कर रही है.
अदालत को ये तय करना है कि जवाबदेही किसकी बनती है—यूनियन कार्बाइड, डाओ या एवरेडी की.
गृहमंत्री पी चिदंबरम का कहना था, “एक बार ये तय हो जाए फिर हम किसी को भी नहीं छोड़ेंगे.”

दबाव की भाषा 

वाशिंगटन से विदेश मामलों की जानकार पत्रकार सीमा सिरोही का कहना है कि इस तरह की भाषा अक्सर दबाव डालने के लिए इस्तेमाल की जाती है.
उनका कहना था कि जब 1984 में भोपाल गैस त्रासदी हुई थी उस वक्त भी जॉर्ज बुश सीनियर ने भारत से कहा था कि मामले को ज़्यादा तूल नहीं दें क्योंकि इससे निवेश पर असर पड़ेगा.
ग़ौरतलब है कि हाल में ही ब्रिटिश पेट्रोलियम के तेल कुंओं से रिसाव के बाद अमरीका ने बिना किसी क़ानूनी मुकदमे के ही उनसे भारी हर्जाना वसूला है.
नवंबर में राष्ट्रपति ओबामा भी भारत के दौरे पर आ रहे हैं और माना जा रहा है कि यदि ये मामला बढ़ा तो दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ सकता है.

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