01 फ़रवरी 2011

खुर्शीद कोई नहीं





साथी तुम चिंगारी को हथेली पर सजाना,
डूब कर आग के दरिया के पार जाना।

हर तरफ जुल्मते है इसलिए,
तुम कहते हो बस, कैसा  है जमाना। 

ये साथी तुम अपनी खामोशी तोड़ों,
है यह गलत, ‘‘खुर्शीद’’ को भी मुंह पर बोलो।

तिस्नगी है उनको तो तुम बस तस्लीम न कर,
बुरा कहने की हिम्मत नहीं, तो बंद कर दो मख्खन लगाना।

यह तिजारत की सियासत है दोस्तों,
साथी तुम तो समझों, बंद कर देगें वे धर्म की दुकान को सजाना।



(खुर्शीद-सुर्य)
(तस्लीम-अभिनन्दन)
(तिस्नगी-तृष्णा)

3 टिप्‍पणियां:

  1. साथी तुम चिंगारी को हथेली पर सजाना,
    डूब कर आग के दरिया के पार जाना।

    क्या बात है! सुन्दर गजल.

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  2. खुबसूरत अहसास ,अच्छी नज्म मुबारक हो

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