18 फ़रवरी 2011

नेटवर्किंग के नाम पर लोगों को ठगी का शिकार बनाने वाला शातीर एनजीओ संचालक गिरफ्तार। पटना में प्रदेश जदयू अध्यक्ष से भी बंटबाया था कंबल। करोड़ो ठगी का आरोप।


नेटवर्किंग के नाम पर लोगों को ठगी का शिकार बनाने वाला शातीर एनजीओ संचालक गिरफ्तार।

पटना में प्रदेश जदयू अध्यक्ष से भी बंटबाया था कंबल।

करोड़ो ठगी का आरोप।

बरबीघा, 

पटना सहित पूरे प्रदेश एवं झारखण्ड में नेटवर्क मार्केटिंग के नाम लोगों को ठगी का शिकार बनाने वाला शातीर एनजीओ संचालक को गिरफ्तार कर लिया गया। केवटी पुलिस की सहयोग से पटना पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। इस संबंध में पुलिस ने बताया कि केवटी गांव से शातिर एनजीओ संचालक बाल्मिकी पासवान को गिरफ्तार किया गया। पुलिस ने बताया कि बाल्मिकी पासवान भारत विकास ट्रस्ट एवं निर्माला इंडस्ट्री के नाम से नेटवर्किंग का एनजीओ चलाता था और प्रति व्यक्ति 1100 से लेकर 15000 रू. तक की बसूली करता था। 

बताया जाता है कि बाल्मिकी पासवान एनजीओ के नाम पर लोगों से रजिस्ट्रेशन के नाम रूपये की बसुली करता था और साथ में कमई का भी प्रलोभन दिया जाता है जिसके झांसे मंे आकर लोग बाद में भी मोटी रकम जमा करते थे। बिहारशरीफ एवं पटना मंे भी उक्त एनजीओ का कार्यालय खोला गया था तथा कई अन्य शहरों में भी इसका कार्यालय का संचालन किया जाता था जहां से उगाही होती थी। इसका मुख्य कार्यालय पटना के महावीर कैंसर संस्थान कें बगल मंे संचालित किया जा रहा था। इसको लेकर सविता देवी एवं अन्य के द्वारा फुलबाड़ीशरीफ थाना में धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया गया था जिसके बाद पटना से आई पुलिस टीम सरफराज ईमाम, राजन कुमार गिरि के नेतृत्व में केवटी थाना महेश्वर प्रसाद के सहयोग से उसको गिरफ्तार कर लियार गया। नाटकीय ढंग से हुई इस गिरफ्तारी में सैप के जवानो ंने भी प्रमुख भुमिका निभाई। पुलिस ने बताया कि शातीर एनजीओ संचालक के द्वारा पटना में एक समारोह कर प्रदेश जदयू अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह से भी कंबल बंटवाया था जिसके बाद हंगामा होने पर  मामला सामने आया। पुलिस ने बताया कि इसके ठगी के खिलाफ पटना मंे काफी हंगामा हुआ और धरना प्रदर्शन किया गया।

बता दें कि बरबीघा में भी इसी तरह का एक एनजीओ फार्मर टस्ट कें नाम से संचालित किया जा रहा है जिसके द्वारा 15000 से 25000 हजार तक आंगनबाड़ी केन्द्र खोलने के नाम पर बसुली किया जा रहा है और एक मोहल्ले में एक दर्जन से  अधिक केन्द्र खोल दिया गया है।

सब साधू है साधू............












उस दिन सभी जगह हंगामा मच गया,
घर से चौरहे तक
चर्चा है...

लड़की घर से भाग गई।

बैठकी में चिल्ला रहें हैं कपिल बाबू
जवानी बर्दाश्त नहीं हुई छिनाल से
गांव-घर का नाम डुबा कर चली गई!!!

खेलाबन चाचा भी बरस रहें हैं
कहते थे की बेटी को कब्जे में रख
चौखट से बाहर गई नहीं की
"त्रिया चरित्र" शुरू!!!

बुधिया काकी के देह में जैसे आग लग गया हो,
छौड़ी
मरदमराय
अभी से कोहवर खोजो है!!

सब कुछ सुन
मन ही मन बुदबुदा रहा है
पगला भोली!!

सब साधू है साधू....
ई कपीलबा
पतोहू के रखेलनी रखे वाला
और
ई खेलबना
बेटी के उमर के मुसहरनी साथ धराबे बाला,
सब साधू है साधू???

काकी को तो पगला बोल ही दिया मुंह पर,
की काकी
अपन बेटी के पेट गिरा के
निशेबजबा संग बियाह देला
बेचारी के देख के तरस बरो है!!!
सब साधू है साधू............

16 फ़रवरी 2011

जमूरे की सुसाइड



मेहरबान,
कद्रदान,
साहेबान,
लोकतंत्रिक देश के ‘‘बुढ़ेजवान’’
सबको इस मदारी का सलाम।

हां तो,
सिपाही जी अपनी टोपी उतार लें,
कालेकोट वाले भाई साहब
और
कलमनवीशों से मेरी गुजारिश है,
आंख बंद कर देखने की सिफारिश है।

तो जनाब
यह मरियल सा आम आदमी
मेरा जमूरा है,
तमाशाबीन आर्यावर्त पूरा है।

‘‘तो बोल जमूरे तुम मरना क्यों चाहते हो’’

‌‌हूजूर
मैंने घोर पाप किया है,
लोकतंत्र के राजा को हरबार माफ किया है,
कभी मुंबई तो कभी रेल बलास्ट,
कभी संसद पर हमला
तो कभी मंदिर-मस्जिद विवाद।

अब तो राजा की मेहरबानी से
मंहगाई का बोलबाला है,
और मेरे जैसों को दाल-रोटी का भी लाले है,

‘‘और इतने पर भी मेरा खून तो अब खौलता ही नहीं’’
‘‘जुंबा तो है पर यह विरोध में बोलता ही नहीं।’’


भ्रष्टाचार और मंहगाई से हम रोज मर रहें है,
इसलिए आत्महत्या कर रहें है।

13 फ़रवरी 2011

हंगाम है क्यों बरपा जो प्रिया दत्त और सलमा अंसारी ने सच कह दी है.....



दो बातें एक साथ मन को मथ रही है। पहली यह की सांसद प्रिया दत्त ने कहा कि वेश्याओं को लाइसेंस मिलना चाहिए और दूसरी यह कि उप राष्ट्रपति की पत्नी सलमा अंसारी ने कहा कि बेटियों को मार दिया जाना चाहिए। दोनों बातों को लेकर मीडिया से चौपालों तक हंगामा मचा हुआ है। बहसें हो रही है।

पहली बात पर पहले आतें है। सबसे पहले मैं यह कह दूं कि मैं प्रिया  दत्त के साथ खड़ा हूं। इसलिए नहीं कि इस तरह के विचार को कुछ लोग सराहेगें और कुछ कॉमेंट मिल जाएगें, बल्कि  इसलिए की मेरे विचार से ऐसा किया जाना मानवता के लिहाज से सही होगा। कभी वेश्याओं से पाला तो नहीं पड़ा है पर बचपन से गांव के बरातियों में वेश्याओं का ‘‘नाच का नाच’’ देखा है और मैं शरीफ बनने के लिए यह नहीं कह रहा कि कभी वेश्याओं का नाचना मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं बचपन से ही  इससे बचता रहा हूं। अभी मैं ऐसा ही कुछ झेला है। कथित समाज के प्रतिष्ठित माने जाने वाले एक सज्जन के घर बच्चे के जन्मोत्सव के अवसर पर रंडी की नाच की व्यवस्था की गई थी। माफ किजिएगा, यहां लोग इसी नाम से नाचनेवालियों को संबोधित करतें है। जनाब की तीन पीढ़ी एक साथ रंडी की नाच देखने कम और उसकी ओढ़नी खींचने, छाती दबाने और चुम्मा लेने में एक साथ मशगूल थे। मैं भी आमंत्रित था और भोजन करने के बाद जबरन मुझे भी नाच देखने के लिए रोका गया। बहुत आग्रह-अनुग्रह करके और मैं वहां से जाने का हिम्मत नहीं जुटा सका। नाच प्रारंभ हुआ दस मिनट रूकने के बाद मैं वहां नहीं रूक सक, मेजवान भागे भागे आए तब मैं तपाक से बोला कि मैं यह नहीं देख सकता, मेरे आखों में आंसू भर आए थे। पता नहीं क्यों मैं हमेशा से यह सब देखता हू और भावुक हो जाता हूं।

मेरे मन में जो विचार उस समय आते है वह यह होती है की यह भी किसी की बेटी होगी। किसी की बहन-बीबी होगी।

सवाल यह है कि जिस कथित सभ्य समाज में एक साथ तीन पीढ़ी वेश्याओं का आनन्द लेने से गुरेज नहीं करती वहां यदि वेश्याओं को मान्यता दे दी जाय तो समाज में कौन सी सडा़ंध हो जाएगी। यह समाज तो पहले से ही सड़ा हुआ है। हां एक बात है कि सड़न को छुपा कर रखा जाता है। बाहर नहीं आना चाहिए। सब कुछ बढ़िया। हमलोग वेश्याओं का मजा तो लेना चाहते है पर खुल कर नहीं। सेक्स की इसी पर्दादारी ने हमारे समाज को गंदा किया है।

दूसरी बात यह कि जो सलमा अंसारी ने कही। बेटियों को मार दिया जाना चाहिए। सलमा अंसारी ने कहा तो हंगामा हो गया पर गांव में किसी गरीब के घर जा कर देखिए, उसकी मां रोज कहती है, मर क्यांे नहीं जाती मंुहझौसी, लड़का खोजने में जिंदगी बर्बाद हो रही है। और यह क्यों। मार ही दी जा रही बेटी। छोटे से मेरे शहर मे रोज आधा दर्जन गर्भपात हो रही है कन्या भ्रुण हत्या का। क्यों हो रहा है ऐसा। बेटी क्यों मर रही है। हमही तो हैं गुणहगार। कहीं दहेज, कहीं बलात्कार, कहीं प्रताड़ना। पर सबकुछ ठीक है, सच कोई नहीं कहे। सभी चिल्लातें है पर बिना दहेज अपने बेटे की शादी करने आगे नहीं आते। विचित्र है अपना समाज भी। कभी जना हुआ था हरिद्वार के शांतिकंज आश्रम में। वहां जो लोग सन्यासी बने हुए है उनकी बात बता रहा है। शान से कह रहें है। बेटे की शादी कर दी है। शांति कुंज में तो दहेज लेना पाप है पर किसी को जानने नहीं दिया। सात लाख नकद और गाड़ी मिली।

दरअसल मैं कहूं तो यह कि यह समाज नामक कोई संस्थान है ही नहीं। यह महज बडे लोगों के द्वारा नाम दिया गया एक शब्द मात्र है जिसमें उंचे लोगों के लिए सभी माफ होता है और गरीब पर नियम लागू।

यह तो घोर पाप है अंदर कुछ बाहर कुछ.... अरे एक बार तो सच को स्वीकार कर लो..... कुछ तो सुधरेगा। एक बात तो सोंचनी ही होगी कि हजारों सालों से जिस समाज को हमारे पुर्वज और कथित धर्मगुरू सुधारने की प्रयास कर रहें है वह समाज सुधरने की जगह बिगड़ क्यों रहा है। क्या कमी है सोंचना तो होगा।



04 फ़रवरी 2011

सरकार को तो शर्म नहीं पर हम क्यों बेशर्म हो गए.. 26/11 के शहीद के चाचा ने किया आत्मदाह।



देश की सरकार बेशर्म है और इतनी बेशर्म की भ्रष्टाचार, मंहगाई और आतंकबाद सभी के प्रति प्रधानमंत्री से लेकर, मंत्री, सिपहसलार  यहां तक की सोनीया गांधी और राहुल गांधी तक बेतुके बयानबाजी भर करते है। कोई कहता है मंहगाई रोकना मेरे बस में नही तो कोई बाटला हाउस के आतंकी के घर जा कर मातम मना आता है। 

बेशर्म सरकार के पास मंहगाई, भ्रष्टाचार और आतंकवाद से लड़ने का एक ही हथियार है और वह भी कारगर। इस कारगर हथियार का नाम है भगवा आतंकाबाद। देश की बर्तमान सरकार ने धर्मनिरपेक्षिता के मयान में सम्प्रदायिक तलबार छुपा रखी है। इसी तरह की तलबार कुछ धर्मनिरपेक्ष लोगों के पास भी है जो अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के लिए निकाली जाती है। दोहरे मापदण्ड के इस देश मे  आज सबसे बड़ी समस्या यह नही है सरकार क्या कर रही है समस्या यह है कि हम क्या कर रहे  है. आखिर ऐसा क्या हो गया है कि 26/11 के शहिदों को न सिर्फ जलील किया जाता है बल्कि शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के चाचा के.  मोहनन को संसद भवन के सामने विजय चौक पर आत्मदाह करनी पड़ गई और यह देशइसे भी महज एक समाचार की तरह ही देखता रह गया ?  

शहीदों का जिस तरह इस देश मे अपमान किया जा रहा है उसमें मोहनन की तरह  हमारा खून क्यों नहीं खौलता। बरवस ही शहीद भगत सिन्ह की याद आ जाती है। आजादी के दिवाने भगत सिंह और उनके साथियों को जब भागकर कोलकत्ता जाना पड़ा तो वहां उन्हें इस बात की चिंता हुई कि आखिर इस देश के लोगों को क्या हुआ कि वे लोग देश की आजादी के लिए जान को दांव पर लगा दिया है और यहां लोग उन्हें आतंकबादी के रूप मे  जानते है और भाषणबाजी करने के साथ साथ अंग्रेजों के पिठठू कांग्रेस के नेता स्वतंत्रतासेनानी बन गए हें । अपने आप को देशभक्त साबित करने के लिए भगत सिंह को अपने साथियों के साथ फांसी पर चढ़ जाना पड़ा पर आज भी  इस देश में कुछ भी नहीं बदला। 

शेष फिर कभी...

01 फ़रवरी 2011

खुर्शीद कोई नहीं





साथी तुम चिंगारी को हथेली पर सजाना,
डूब कर आग के दरिया के पार जाना।

हर तरफ जुल्मते है इसलिए,
तुम कहते हो बस, कैसा  है जमाना। 

ये साथी तुम अपनी खामोशी तोड़ों,
है यह गलत, ‘‘खुर्शीद’’ को भी मुंह पर बोलो।

तिस्नगी है उनको तो तुम बस तस्लीम न कर,
बुरा कहने की हिम्मत नहीं, तो बंद कर दो मख्खन लगाना।

यह तिजारत की सियासत है दोस्तों,
साथी तुम तो समझों, बंद कर देगें वे धर्म की दुकान को सजाना।



(खुर्शीद-सुर्य)
(तस्लीम-अभिनन्दन)
(तिस्नगी-तृष्णा)