मैं मंदिर नहीं जाता
न ही भोर में
जलाकर धूप
बजाकर घंटी
अपनी आस्तिकता का
पीटता हूँ ढोल...
न ही मैं पांचों वक्त नमाजी
या कि हाजी
होने का गुरूर
दिखता हूँ हर जगह...
या की चर्च में
कन्फेशन कर
फिर से वही
दुहराता हूँ...
न ही गुरूद्वारे में
टेक कर मथ्था
वाहे गुरू को
झुठलाता हूँ...
पर हाँ
जब भी कहीं
अनैतिकता
अनाचार
की बात आती है
मेरी आस्तिकता
ही मुझे बचाती है...
न ही भोर में
जलाकर धूप
बजाकर घंटी
अपनी आस्तिकता का
पीटता हूँ ढोल...
न ही मैं पांचों वक्त नमाजी
या कि हाजी
होने का गुरूर
दिखता हूँ हर जगह...
या की चर्च में
कन्फेशन कर
फिर से वही
दुहराता हूँ...
न ही गुरूद्वारे में
टेक कर मथ्था
वाहे गुरू को
झुठलाता हूँ...
पर हाँ
जब भी कहीं
अनैतिकता
अनाचार
की बात आती है
मेरी आस्तिकता
ही मुझे बचाती है...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन राष्ट्रीय बालिका दिवस और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसशक्त और प्रभावशाली प्रस्तुती....
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