05 जनवरी 2014

निगोड़ी भूख और गरीब का बच्चा.

(एक आंगनबाड़ी केन्द्र पर खबर बनाने के दौरान बच्ची की यह तस्वीर खिंची और बरबस ही शब्दों ने कविता का रूप ले लिया...)

कोई पिज्जा नहीं खाता, कोई बर्गर नहीं खाता।
हमारी भूख कैसी है? यह सबकुछ निगल जाता।।

तुम्हारे देह पर सजते है सुनहरे ड्रेस रंगीले।
हमे तो देह ढ़कने को फकत गुदड़ी ही मिल पाता।।

तुम्हारे पुस्तकों में भी खनक सिक्कों की होती है।
हमे तो काली सिलौटों को फकत पेल्सुट न मिल पाता।।

हमारा  दोष क्या है जी, खुदा के हम भी बच्चें है।
तुम्हारी हंसी नहीं थमती, हमें तो अब रोया भी नहीं जाता.....

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