28 मई 2014

दो पुराने मित्रों का वार्तालाप

मोदी जी बोले- आपको कितनी सीटें मिली, कहिए?
नीतीश बाबू ने कहा - दो।
मोदी बोलो-लो।
मित्रता में यह कैसा संयोग
बनारस और बड़ौदा
मुझको भी सीटें मिली दो
अब आगे क्या करोगे, कहो?

नीतीश बाबू ने कहा- इस्तीफा दूंगा।
बोले मोदी- मित्र,
आपने भले ही भोज का न्यौता दे, बिज्जे गायब किया।
पर मैं मित्र धर्म का पालन करूंगा
और आपके साथ साथ
मैं भी सीएम की कुर्सी से इस्तीफा दूंगा.....
मैं भी सीएम की कुर्सी से इस्तीफा दूंगा.....

आप आये तो आंखें में नमी क्यूं है..

आपके इंतजार में उदास थी आंखें।
आप आये तो आंखें में नमी क्यूं है।।

मोहब्बत तो खुदा की नेमत है।
फिर आदमी में इसकी कमी क्यूं है।।

गीता और कुरान का पैगाम तो मोहब्बत है।
फिर उन्हीं पन्नों पे धूल सी जमी क्यूं है।।

दिनों-ईमां से बढ़कर कोई मजहब नहीं होता।
फिर मजहबी जलसो में हुजूम क्यूं है।।

18 मई 2014

नीतीश बाबू के पाप और पुण्य

नीतीश बाबू के कार्यकाल बिहार के लिए स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाएगा। बिहारी होना अपने ही देश में कलंक की तरह थी। लालू प्रसाद के राज में बिहार को अन्य प्रदेशों के लोग आफगानिस्तान की तरह समझते थे। बात भी सच थी पर नीतीश कुमार ने बिहार को वहां से निकाल कर एक बार देश के अन्य राज्यों के साथ प्रतिस्पर्धा में लाकर खड़ा कर दिया। पर यह सब एक झटके में नहीं हो गया। इसके लिए नीतीश कुमार ने काफी मशक्त की पर एकबारगी आज वह खलनायकों के कठघरे में खड़े हो गए, ऐसा क्यों?

लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में नीतीश कुमार का आंकलन बिहारी मानस को नहीं समझ पाना ही है। चुनाव के दौरान जदयू के कई नेताओं को यह सुनने को मिला यह विधान सभा का चुनाव नहीं है, आप विधान सभा में वोट लिजिएगा अभी तो मोदी है। यह बड़े संकेत है पर नीतीश कुमार ने इस्तीफा देकर एकबारगी सबको सक्ते में डाल दिया। यही तो नीतीश कुमार की राजनीति है। 
नीतीश कुमार ने बिहार को जीरों से बनाकर आज यहां लाकर खड़ा किया है। सबसे पहले उन्होंने बिहार की उस सड़क को चकाचक किया जिसपर बरसात के दिनों में धान की रोपनी होती थी। कमर तक गडढे वाली सड़क आज सरपट दौड़ती है। फिर बिजली की हालत को उन्होने सुधारकर यहां तक लाया कि आज पर्याप्त बिजली रहती है और गर्मी के दिनों में बिजली कंपनी और राबड़ी सरकार की खिचखिच की बरबस याद आ जाती है। वहीं रोजगार के क्षेत्र में उन बेरोजगार युवकों को रोजगार दिया वे या तो बेरोजगारी की वजह से डिप्रेशन में जी रहे थे या हजार पांच सौ की नौकरी कर रहे थे। भले ही उनका नियोजन हुआ पर उनके घरों के खामोश चुल्हों में धुंआ उठने लगा, उनके बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ने लगे और कई उच्चा डिग्री धारी हमारे भाई बंधू जो समाज और परिवार से नकार दिये गए थे  आज शान से चलते है।
कृषि के क्षेत्र में नितीश कुमार ने बिहार को गर्त से निकाला। मृतप्राय कृषि विभाग को जिवंत किया। हाइब्रीड बीज, श्रीविधि से खेती के लिए बीज और खाद देकर किसानों को सरकार के होने का एहसास कराया। आज बिहारी किसान के घरों में धान की परंपरात मोरी (बीज) नहीं होती बल्कि वे हाइब्रीड बीज अपने खेतों में लगाते है और प्रखण्डों में कई कई राइस मीलों का खुलना इस बात का उद्घोष है।
अस्पतालों में जहां कुत्ते और जानवर होते थे आज मरीजों का तांता लगा रहता है। अकेले में प्रखण्ड अस्पताल में एक दिन में 300 तक मरीज देखे जाते है और सिजेरियन ऑपरेशन होता है। 
स्कूली शिक्षा में अमूल चूल परिवर्तन आया और आज सरकारी स्कूलों में विद्यार्थियों की भरमार है। खास कर छात्राआंे को घरों से निकाल कर नीतीश कुमार ने उसे साईकिल का पंख दिया और आने वाले दिनांे में बिहार नारी शक्ति के रूप में उभर जाएगा।
रंगबाजों का बिहार आज अपराधी को सलाखों के पिछे ढकेल रही है। अपहरण का उधोग बंद हुआ। अपराध होते है पर अपराधी पकड़े जाते है। सड़कों पर रात रात भर वाहन दौड़ते है।
कुर्तेवाजी बाले नेता जी की दलाली बंद हो गई। विधायक जी को कमीशनखोरी पर  अंकुश। बहुत कुछ बेहतर किया नीतीश कुमार ने पर उसके कुछ नकारात्मक पक्ष भी देखना होगा।
नीतीश कुमार ने गांव गांव गली गली शराब की दुकानें खोल दी परिणामतः गलियों में महिलाओं को निकलना दुभर हो गया। नियोजन के नाम पे शिक्षकों का नियोजन ऐसे किया गया कि एक एक को सौ सौ जगह आवेदन करना पड़ा और फिर बिना मोटी रकम के नियोजन ही नहीं हुआ। उसपे भी नकली प्रमाण पत्र को जांच तक नहीं हुई और उच्चके सब शिक्षक बन बैठे। इसका दुष्परिणाम नौनिहालों के शिक्षा पर पड़ा और लोगों में नाराजगी बढ़ी। ब्लॉक और थानांे में आम आदमी का कोई नहीं सुनता। बिना चढ़ावे एफआईआर नहीं होती। किसी को निदोर्ष को पकड़ कर जेल भेज दो और फिर किसी की पैरवी नहीं चलती।
सेवा यात्रा हो या कार्यकत्ताओं का गुस्सा उन्होने डांट कर दबा दी। उनके आस पास कोई उचित सलाहकार भी डर से सच नहीं कह सके और अन्त में परिणाम इसी रूप में सामने आया।
और आखिरकर नीतीश बाबू भी लालू की राह पकड़ते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण की गोटी खेली और भाजपा से गठबंधन तोड़ कर उसे दूध में मख्खी की तरह निकाल फेंका। इससे वोटरों को निराशा हुई। इसी तुष्टीकरण के खिलाफ उनको वोट मिला और वे भी वही करने लगे। लालू जी की राह पकड़ते हुए उन्होने भी उटपुटांग वयान देना शुरू कर दिया।
अन्ततोगत्वा इस चुनाव में जहां देश ने छद्म सेकुलरिज्म को नकार कर यह मैसेज दिया कि सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण ठीक नहीं, वहीं इसकी जद मंे नीतीश कुमार भी आ गए। मेरे एक युवा मित्र की इस कथन पे गौर करें ‘‘बार बार मुस्लिम मुस्लिम कह कर हमे हिन्दू बनने पर मजबूर मत करिये... हमें धर्मनिरपेक्ष रहने दिजिए.. प्लीज।’’ इसलिए विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ जनता यही सलूक करती कहा नहीं जा सकता? और अपनी गलतियों को सुधारने का नीतीश कुमार के पास पूरा पूरा मौका है पर लालू के साथ जाकर वे इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने वाले अपने नाम पे कालिख पोत लेगें...

11 मई 2014

भस्मासुरी मीडिया को कौन रोकेेगा?

जब किसी वीजेपी समर्थक अपनी ही पार्टी के नेता मोदी को लगातार दिखाए जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए कहे कि ‘‘यह तो गेन्हा गया’’ तो समझा जा सकता है न्यूज चैनल पतन की पराकाष्ठा पार कर चुकें है मेरे जैसे आपके आस पास यह कहते हुए कई मिल जाएगें कि ‘‘मैने न्यूज चैनल देखना बंद कर दिया है सिर्फ एक ही नेता को दिखाते रहते हैैं।’’

  यह सब क्या है? बात जब संविधान प्रदत्त अधिकार की आती है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सर्वोपरी माना गया है और इसी अधिकार का दुरूप्योग आज कॉपोरेट मीड़िया घराना और मीडिया के आड़ में छुपे भ्रष्टाचारी कर रहें है। वेशक इसमें न्यूज चैनलों ने बाजी मार ली है पर अखवारों नें भी इसी राह पर चलना श्रेष्यकर समझा।

निश्चित रूप से इस सब के पीछे पूँजीबाद है। पूँजीवादी व्यवस्था कभी भी लोकतंत्रिक और जनपक्षी नहीं हो सकती और इसलिए आज कॉरपोरेट घराना कमर बांध कर मोदी को प्रोजेक्ट करने में जुटे और सफल हुए। आज किसी चैनलों, अखबारों और पत्रिकाओं में नरेन्द्र मोदी का विज्ञापन पूँजीवादी व्यवस्था का सर्वोत्म उदाहरण है और इसका वाय-प्रोडक्ट के रूप में सुबह से शाम तक मोदीमय हुए न्यूज चैनल लोकतंत्र को लीलने के लिए व्याकुल दिखता है।

जिस तरह से न्यूज चैनल आज मोदीमय है उसी प्रकार से अन्नामय और राहुलमय होना भी निन्दनीय है। केजरीवाल को लेकर लगातार कवरेज और आज हाशिये पे उनको ढकेलना सवाल खड़े करते हैै?

ऐसा नहीं है कि भगत सिंह सरीखों को पैदा करने वाली रत्नगर्भा भारत माँ की कोख आज बांझ हो गई है पर यह भी सच है कि ऐसे सपूत भी पूँजीवादी जाल में उलझ कर दम तोड़ रहें है।
    आने बाले दिनों में भले ही इस देश का प्रधानमंत्री कोई बनें पर एक बात तो तय है मीडिया रूपी भस्मासुर से लोकतांत्रिक शिव को बचानें के लिए किसी न किसी को तो मोहनी रूप धारण कर आना ही होगा हमे तो उसी का इंजतार है और तभी हम कहेंगें सच्चे मायनों में  अच्छे दिन आने वाले है।

03 मई 2014

‘‘एक हाथ में गीता और एक हाथ में कुरान हो’’


‘‘एक हाथ में गीता और एक हाथ में कुरान हो’’
मौका जब मिलो तब हंसके हंसोत ला
दुनिया जब हंसे लगो तब मुड़िया अपन गोत ला।’’
मगही कवि सम्मेलन में कवियों ने बिखेरे जलबे।
बरबीघा, शेखपुरा (बिहार)
‘‘एक हाथ में गीता और एक हाथ में कुरान हो/ऐसा मेरा हिन्दुस्तान हो’’ कवि शफी जानी ‘‘नादाँ’’ की कौमी एकता के इस गीत पर महफिल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज उठी। मौका था मगही कवि सम्मेलन का।
कवि सम्मेलन का मंच संचालन मगही कवि उमेश प्रसाद उमेश ने किया। वहीं कवि उमेश बहादुरपुरी ने अपनी कविता ‘‘कोढ़फुट्टा’’ एवं रणजीत दुधू ने ‘‘मोबाइलबा जी के जंजाल हो’’ से सबको खूब हंसाया। वहीं कवि दयाशंकर बेधड़क ने अपनी कविता ‘‘ मौका जब मिलो तब हंसके हंसोत ला/दुनिया जब हंसे लगो तब मुड़िया अपन गोत ला।’’ के माध्यम से व्यंग वाण छोड़े।
समारोह में मिथलेश, दीनबंधू, उदय भारती, जयराम देवसपुरी, दयाशंकर बेधड़क, मुकेश कुमार ने अपनी अपनी कविता का पाठ किया।
इस मौके पर कवि उमेश बहादुरपुरी की काव्य संग्रह ‘‘माफ कर देना’’ का लोकापर्ण भी किया गया।