04 मार्च 2016

वामपंथी नेता कन्हैया के नाम एक खुला पत्र उर्फ़ भारत तेरे टुकड़े होंगें की मंशा पे मौन क्यों?

वामपंथी नेता कन्हैया के नाम एक खुला पत्र उर्फ़ भारत तेरे टुकड़े होंगें की मंशा पे मौन क्यों?
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कन्हैया,
सबसे पहले तो आपको बहुत बहुत बधाई। आपके अंदर भविष्य के नेता की एक उम्मीद सबको दिखी। खास कर आपके लंबे भाषण को सुन कर। गुरुवार की रात उस भाषण को मेरी ही तरह समूचे देश ने सांसे रोक कर सुनी। आपने वाकई बहुत ही ओजस्वी भाषण दिया। देते भी क्यों नहीं, आखिर आप देश की राजनीति का सबसे प्रखर अड्डा जेनयू के छात्र संघ के अध्यक्ष जो है। देश का हर वह नागरिक जो न मोदी भक्त है और न ही वामपंथी, न कॉंग्रेसी, बड़ी उम्मीद से आपके उस प्रखर वक्ता की तरह के सम्बोधन को सुनता है।

आपके अक्षरशः सम्बोधन से वैसे लोग सहमत है, होना ही चाहिए। आखिर देश की राजनीति को मोदी जी और संधियों द्वारा कट्टरपंथ की ओर ढकेल दिया जो गया है! आपने सही कहा कि मोदी एंड पार्टी द्वारा मंहगाई, गरीबी, समानता और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए नए नए मुद्दे गढ़ दिया जाता है।
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आपने यह भी सही कहा की छात्रों की आवाज को दबाया नहीं जा सकता, जितना दबाओगे उतना प्रतिकार होगा।

पर भाई कन्हैया,
मैं देर रात तक जाग कर उन राजनैतिक मुद्दे पे आपके विचार जानने के लोए ऑंखें फाड़ कर टीवी से चिपका नहीं रहा, बल्कि मुझे उम्मीद थी की आप कम से कम यह तो कहेंगे ही कि

""भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाहल्लाह, इंशाहल्लाह"" के नारों का आपने कभी समर्थन नहीं किया, देश की संसद पे हमले का दोषी करार अफ़जल को शहीद बताने वाले बरसी समारोह में आपकी सहभागिता नहीं थी। हर घर से अफ़जल निकलेगा का नारा आपने नहीं लगाया।

और यह भी की भारत के टुकड़े होने की देशद्रोही मंशा रखने वाला देश द्रोही है और आप उनके साथ नहीं है।

पर कामरेड कन्हैया,
माफ़ करना, आपने ऐसा नहीं कहा....? मेरे जैसे वाम धारा के लोगों को इसी बात से भारी तकलीफ है। कन्हैया, बता देना चाहता हूँ कि मैं मोदी भक्त नहीं हूँ, मोदी का आलोचक रहा हूँ और भक्तों से गालियां मैंने भी खायी है। इसलिए मेरी बातों को किसी भक्त या संघी की आवाज कहके ख़ारिज मत कर देना क्योंकि एक अकेले जेनयू विवाद से मेरे अंदर का वामपक्ष शर्मिंदा हो रहा है। सेकुलर होने का मेरा दावा शर्मिंदा हो रहा है।

हे कामरेड कन्हैया, हो सके तो मेरे इस बात का जबाब देना कि

क्या दक्षिणपंथ का विरोध करने के लिए आतंकवाद का समर्थन करना जरुरी है।

आखिर अपने बिहार के गांव में एक देहाती कहावत तो बड़ी प्रचलित है ही
" मौनम् स्वीकार लक्षणम्" । मैंने भी आपके पड़ोस के एक गांव में रहता हूँ, और मैं भी वामपंथी छात्र संगठन अईसा का जिलाध्यक्ष रह चूका हूँ। मेरे प्रश्नों का शायद आप जबाब देंगे।

मेरा पता है।
अरुण साथी, ग्राम-शेरपर, पोस्ट-बरबीघा, जिला-शेखपुरा (बिहार)
9234449169
sathi66@gmail.com

1 टिप्पणी:


  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-03-2016) को "दूर से निशाना" (चर्चा अंक-2272) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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