15 जून 2016

कैराना और कन्फ्यूजन

कैराना, कन्फ्यूजन, पॉलटिक्स और अविश्वास

यूपी के शामली जिले के कैराना से बड़ी संख्या में हिंदुओं के पलायन को लेकर बबाल मचा हुआ है। बीजेपी के स्थानीय सांसद ने इस मुद्दे को उठाया है। पलायन का कारण मुसलमानों के द्वारा प्रताड़ित किया जाना बताया जा रहा है। पर कैराना पे बहुत कन्फ्यूजन है।

पहली बात तो यह कि यूपी में चुनाव है और बीजेपी हिन्दू वोट बैंक के पोलराइज़्ड करने के लिए यह सब करेगी ही। दूसरी बात यह कि कैराना का सच क्या है इसे जानने का कोई साधन, चेहरा, मीडिया उन लोगों को  नजर नहीं आता जो सच में आम आदमी है, निरपेक्ष।

कैराना को लेकर ज़ी न्यूज़ जैसे भक्तिभाव से भरे न्यूज़ चैनल चिल्ला रहे है, इनपे तो कतई विश्वास नहीं किया जा सकता। इनके सहकर्मी भी मीडिया ग्रुप यही कर रहे है।

दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी के आविर्भाव से व्यथित NDTV जैसे बाकि चैनल और मीडिया ग्रुप खामोश है या इस पलायन को अपराध और रोजगार से जोड़ कर इसकी हवा निकाल रहे है। 

सोशल मीडिया पे भी यही हाल है। एक तरफ भक्त, दूसरी तरफ अन्धविरोधी...!

रही बात तथाकथित सामाजिक और बुद्धिजीवी वर्गों की, तो दादरी और कन्हैया प्रकरण पर उनके अन्धविरोधी चरित्र ने दुनिया में देश का मान डुबाया।

अब कैराना का सच कैसे जान पायेगा आम आदमी...एक आम आदमी पार्टी भी भ्रष्टाचार का विरोध करते करते केवल मोदी विरोध का पर्याय बन गई....

देश में एक भी मीडिया ग्रुप, सामाजिक कार्यकर्त्ता ऐसा है क्या जिससे निरपेक्षता की उम्मीद की जा सके...? देश के लिए यह भयावह स्थिति है...भयानक डरावना...

04 जून 2016

उन्मादी और हिंसक है हम

उन्मादी और हिंसक है हम

हम उन्मादी है। मथुरा में यही दिखा। एक सनकी और उन्मादी के पीछे हम भी उन्मादी होकर खड़े हो गए। कभी कोई आशाराम, कभी कोई नित्यानद, कभी कोई रामपाल, कभी कोई रामदेव, कभी कोई केजरीवाल, कभी कोई मोदी...के पीछे हम उन्मादित होकर चल देते है।

अपनी आँख, कान बंद रखते है। हमारे उन्माद को वे हवा देते है। कभी राष्ट्रबाद के नाम पे, कभी सेकुलरिज्म के नाम पे, कभी धर्म के नाम पे...और मथुरा में एक सनकी सुभाष चंद्र बोस के नाम पे हमें अफीम दी और हम जान ले लिए और जान दे दिए...

यह हमारे अंदर की हिंसा की मुखरता है। हिंसा हमारे अंदर है और वह किसी भी बहाने से बाहर आता है।