26 मई 2018

सावधान! शनिवार और रविवार को 43 से 44 डिग्री रहेगा तापमान। दोपहर बाद दो बजे से पांच बजे तक सर्वाधिक तापमान।

सावधान होकर निकल लिए घर से

शेखपुरा। बिहार

24 मई से रोहणी नक्षत्र के प्रवेश करने के बाद से ही मौसम का पारा ऊपर चढ़ गया है। जहां शुक्रवार को पारा 40 डिग्री रहा वहीं शनिवार और रविवार को 43-44 डिग्री अधिकतम रहने की संभावना है। मौसम विभाग के द्वारा जारी किए गए इंटरनेट आंकड़े को अगर माने तो रविवार को और शनिवार को न्यूनतम तापमान 29 डिग्री रहेगा जब की अधिकतम तापमान 44 डिग्री रहेगा।

2:00 बजे से 5:00 बजे तक सबसे अधिकतम रहेगा तापमान

दोपहर बाद 2:00 बजे से लेकर 5:00 बजे तक सबसे अधिक कम तापमान रहने का अनुमान है। शनिवार और रविवार को 4:00 बजे तापमान 43-44 डिग्री पहुंचेगा। संध्या 7:00 बजे के बाद तापमान धीरे-धीरे क्रमबद्ध नीचे जाने का आकड़ा दिया गया है। 12:00 बजे दोपहर के बाद तापमान धीरे-धीरे बढ़ना शुरू करता है।

30 मई तक रहेगा सर्वाधिक तापमान
1 जून से होगा 36 डिग्री

मौसम का मिजाज मई माह तक सर्वाधिक रहेगा। 30 मई तक अधिकतम तापमान 42 डिग्री रहेगा। 31 मई को 39 डिग्री जबकि एक जून से अधिकतम तापमान 36 डिग्री रहेगा। इसके बाद क्रमशः कम होता जायेगा।

लू से बचने के लिए क्या कहते हैं चिकित्सक

लू से बचाव को लेकर बरबीघा रेफरल अस्पताल में तैनात चिकित्सक डॉ फैजल अरशद इशरी ने बताया कि ऐसे मौसम में जमकर पानी पीना चाहिए और खाली पेट कभी नहीं रहना चाहिए। जहां तक हो सके धूप से बचना चाहिए और अत्यधिक ठंडा पानी का सेवन भी नहीं करना चाहिए। साथ ही साथ धूप में निकलने पर सर और कान को ढक लेना चाहिए।

रसदार फल तरबूज वगैरह का भरपूर सेवन भी करना चाहिए। साथ ही साथ कच्चे आम का बनने वाला आमझोड़ और नींबू पानी का भी सेवन फायदेमंद होता है।

लू लगने का क्या है लक्षण

यदि खूब प्यास लगना, मुंह सूखने लगना,
आंख धंसने लगना, बुखार आना, पेशाब कम लगना, चक्कर आने लगना और उल्टी आना लू लगने के लक्षण है। ऐसे में तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।



06 मई 2018

गजब! टिटहीं रोग हुआ वायरल, दुनिया भर में लोग बीमार..आप भी चेकअप करा लीजिये...

आजकल मेरे जैसे ही कई लोग टिटहीं रोग के शिकार हैं। इस रोग के बारे में नहीं पता, घोर आश्चर्य! चेकअप करवाइए, हो सकता है आप भी इस के मरीज हो! यह बहुत तेजी से वायरल हुआ है और इस को फैलाने में मार्क जोकरबर्ग का सबसे बड़ा योगदान है। हां, एक और व्यक्ति का भारत में सर्वाधिक योगदान है, वह है जियो जिंदाबाद के नारा देने वाले, कर लो दुनिया मुट्ठी में करके जेब भरने वाले अंबा(नी) का। अभी भी नहीं समझे, कौन से रोग की बात हो रही है।

टिटहीं रोग!

यह बहुत ही प्रसिद्ध और पौराणिक रोग है। पहले यह गांव-देहात में दस कोस, बीस कोस पर एक-आध लोगों को होता था। देश और दुनिया भर में कुछ ही लोग पाए जाते थे। वैसे लोग को आगरा अथवा कांके नामक धर्मस्थल पे पूण्य लाभ कराया जाता था। अब भी नहीं समझे तो बड़े बुजुर्गों से पूछ लीजिए। वह बताएंगे।

खुलासा

गांव में एक टिटहीं नामक पंछी पाया जाता है। यह जब सोता है तब दोनों पैर को ऊपर कर लेता है। उसको लगता है कि यदि सोते हुए आसमान गिर गया तब तो सभी दबकर मर जाएंगे। इसलिए वह दोनों पैर को ऊपर कर लेता है। सोंचता है, यदि आसमान गिरेगा तो वह उसे रोक लेगा।

उदाहरण
हम सब फेकबुक और व्हाट्सवक पर यही तो करते हैं। बाकी कम लिखना, ज्यादा समझना, समझदारों की समझदारी है। ढक्कप्लेट टाइप के लोगों के लिए ज्यादा भी लिखना कुछ नहीं समझना है।

वैसे ही जैसे भैंस के आगे बीन बजाए, बैठे भैंस पगुराय। न तो मुझे बीन बजानी आती है और न ही आप भैंस हैं।

अच्छा! नहीं देखे हैं तो मेरे सहित बहुत से लोगों के प्रोफाइल खोल कर देख लीजिए। दिन-रात वे आसमान को रोकने में लगे हुए है। बहुत लोग है। भरे पड़े।

बहुत है जिनके प्रोफ़ाइल देखके आपके आँख में पानी आ जाएगा। गंधी महत्मा, भगथ सिह, बोस बाबा, बाबा साहेब,  सबकी आत्मा खिचड़ी की तरह इनमें समायी हुई दिखेगी।

कोई धर्म बचा रहा है। कोई शरीयत। कोई जाति बचाने को चिंतित है तो कोई धर्म स्थल! कोई गाय! कोई गीत! कोई राष्ट्रवाद! टटका तो और भी गजब है। जिन्ना को बचाने वाले कि प्रोफ़ाइल देख आपका दिल भर आएगा।

जय श्री राम के नारे लगाने वालों से प्रोफ़ाइल अटी पड़ी मिलेगी। जी हाँ! मर्यादापुरुषोत्तम की!

प्रोफ़ाइल देख के लगेगा स्वर्ग तो यहीं है। अलौकिक! अद्भुत! साधुओं से पटी हुई। संतों की दुनिया! दानियों की दुनिया! राम राज।

चेतावनी

चेतावनी है कि फेकबुक की दुनिया में ही रहियेगा, बाहर निकलना खतरनाक सिद्ध हो सकता है। मर्यादापुरुषोत्तम की मर्यादा तभी बचेगी। भूल से भी गांव-शहर के कोचिंग वाली गली में मत जाईयेगा वरना आपको आत्महत्या करनी पड़ सकती है। एक जैसे चेहरे दिखने के बाद आपके पास उपाय भी कुछ नहीं बचेगा...

डिस्क्लेमर

नालियों में कहीं आपको बजबजाती, बदबूदार सड़ी हुई लाश मिले तो कुछ मत पूछियेगा वरना वह अपना नाम मानवता बता के आपको शर्मसार कर सकता है!

जे टिटहीं, जे हिन.. जे भारत...गन्हि महत्मा की जे..

जनहित में जारी

(यह एक टिटहीं का बकलोल वचन है। मजाक में लिखा गया। इसे सीरियसली लेना मना है। सीरियसली लेने से पूर्व सूचित करें वरना किसी घटना-दुर्घटना की जिम्मेवारी आपकी अपनी होगी।)

कार्टून गूगल देवता से साभार

02 मई 2018

कलयुगी विद्या: चने की झाड़ पे चढ़ाने की कला और कलाकार

आजकल चने की झाड़ पे चढ़ाने का जमाना है। इसके कई फायदे है। पहला तो यही की, चने के झाड़ पे चढ़ाने के लिए बहुत कुछ तामझाम नहीं करना पड़ता है। मेहनत एक फायदे अनेक। वैसे तो चने की झाड़ पे किसी को भी चढ़ाया जा सकता है पर नेताओं को इसका सर्वाधिक शिकार बनाया जाता है।

दूसरा फायदा यह कि जो चने की झाड़ पे चढ़ते है उनको कभी भी गिरने पे चोट ही नहीं लगती। कैसे लगेगा! जब कोई ऊंचाई ही नहीं तो चोट कैसा! हाँ ब्रेन चाहिए तगड़ा। खास कर नेताओं को चने की झाड़ पे चढ़ाना मने कुत्ते को बुर्ज खलीफा पे चढ़ाना हो जाता है। अब दुनिया जानती है कि ऊंचाई बुर्ज खलीफा की है पर कुत्ते को लगता है कि यह उसकी ऊंचाई है। खैर! लगने दीजिये इसमें किसका क्या जाता है। अपना काम बनता भांड में जाय जनता।

रुकिए, बात चने की झाड़ पे चढ़ाने की हो रही थी। वहीं रहते है। नेताओं की तरह दल बदल नहीं। सो चने की झाड़ पे चढ़ाना एक कला है। यह किसी किसी दिगंबरी आदमी में ही होता है। दिगंबरी आदमी तो बस मधु मिश्रित वचन से ही किसी को चने की झाड़ पे चढ़ा देता है।

कुछ माहिर लोग इसके लिए जिस नेता को चने की झाड़ पे चढ़ाना है उसके कान में कुर्सी कुर्सी नामक मंत्र फूंकते है। फिर कोई समारोह करके कुर्सी भरनी होती है। समारोह कुछ भी हो सकता है। शौचालय का शिलान्यास, (उद्घाटन का टेंशन नहीं)! गुल्ली-दंडा टूर्नामेंट! बाबा बकलोलानंद महाराज माहजग खरमंडल! कुछ भी! नहीं कुछ तो बकरी के बच्चे का जन्मोत्सव का आयोजन सर्वाधिक प्रचलन में है। आशीर्वाद देने ढेर लोग आ जाते है। बस फेसबुक, व्हाट्सएप्प पे धड़ाधड़ भेजते रहिये। प्रत्येक दिन। फिर कॉल भी करिये। बन गया काम। हाँ भोज में मटन शटन होना अनिवार्य शर्त है।

समारोह में भले ही कुर्सी खाली रह जाये पर फर्क नहीं। चने की झाड़ पे चढ़े नेता की खाली कुर्सी भी भड़ी दिखती है।

फिर कुछ लंपट, लफ्फड़ लोगों को दारू, मुर्गा, बाइक के पेट्रोल आदि इत्यादि का जोगाड़ कर दीजिए। हो गया काम। हाँ! चने के झाड़ पे चढ़ाने के लिए फूलों की माला सर्वाधिक उपयोगी यंत्र है। जितना अधिक फूलों की माला उतना अधिक काम आसान। मने समझिये की फूल की माला ही चने की झाड़ की सीढ़ी है। यदि बड़ा माला बना दिये जिसमे आठ दस आदमी आ जाएंगे तो समझ लीजिए काम चांदी।

क्या कहे उदाहरण! दुर्र महराज! अपने पप्पू भैया को देखिए न! इधर उधर काहे देखते है जी। हमेशा अपने आस पास के घटनाक्रम से जोड़ लेते सभी मैटर को। कभी तो ऊंचा उठिये। नेशनलिस्ट बनके के सोंचिये। या इंटरनेशनली सोंच रखिये। बाकी बात जीतो दा के बिलायती चाचा का फोन जाएगा तब न पता लगेगा। इंतजार करिये...तब तक कोई उपदेश, कोई शेरो शायरी, कोई प्रेरक कहानी जो किसी ने आपको भेजा हो और आपके स्वभाव, आचरण से वह विपरीत हो दूसरे को व्हाट्सअप करते रहिये..जय बकलोला नंद जी महाराज की जय..